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रविवार, फ़रवरी 21, 2010

अपनों का सौदा

अपनों का अपनों से सौदा,
अरमानो को अपनों ने रौंदा।

स्वप्न बह गए पानी बनकर,
नयनो में पलने से पहले।

कलियाँ टूट गयी शाखा से,
सूर्योदय होने से पहले।

अपनों ने मारा अपना बनाकर,
दर्द दे गये दवा बनाकर।

जीवन की उम्मीद दिखाकर,
बद्दुआ दे गये दुआ बना कर।

अपने फिर भी अपने होते है,
अपनों के सौदे होते है।


1 टिप्पणी:

आपकी सराहना ही मेरा प्रोत्साहन है.
आपका हार्दिक धन्यवाद्.